November 22, 2024

*”शिक्षा का व्यवसाय: प्राथमिकता के बाजार में नैतिकता की कमी”*

बिलासपुर। आजकल की शिक्षा व्यवस्था में विद्यार्थियों की प्राथमिकता और नैतिकता को अनदेखा कर, व्यवसायिक हो गई है। शिक्षा के क्षेत्र में व्यापारिक दृष्टिकोण ने नैतिकता को भूला दिया है। इस संदर्भ में
शिक्षाविद डॉ. क्लेरिटा डी.मेल्लो का कहना है कि शिक्षा, जो पूर्णतः समाज की सेवा का काम करना चाहिए, आजकल एक व्यवसाय बन चुका है। इस दौर में, जहां लोग शिक्षा को एक समाजिक निवेश के रूप में देखते थे, वहां आजकल शिक्षा को केवल एक अर्थिक लाभ का स्रोत माना जा रहा है। पैसे के मोह में, अभिभावक अक्सर उन स्कूलों को चुनते हैं जो केवल अकादमिक उत्कृष्टता पर ध्यान देते हैं और इससे नैतिक शिक्षा को अनदेखा कर देते हैं।
इस संदर्भ में बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की मांगों को पूरा करने के लिए दबाव बनाते हैं, जिससे परिवार के सदस्यों पर धमकियाँ हो सकती हैं। अधिकांश पेरेंट्स मार्क्स के पीछे भाग रहें हैं और कुछ परिवार सस्ते स्कूलों को अच्छी शिक्षा की जगह चुनते हैं, जिससे उनके बच्चों की शिक्षा का स्तर गिर रहा है। यह ध्यान दिलाने वाला है कि शिक्षा का मूल उद्देश्य, जिन्हें समाज की निर्माण करने का काम सौंपा गया है, अब पैसे के चक्कर में खो गया है।
शिक्षा का मूल उद्देश्य होता है बच्चों को समाज में सही राह दिखाना, नैतिक मूल्यों की समझ और समाज के विकास में योगदान करना, परंतु यह समाज में एक नई समस्या का रूप ले रहा है। आजकल की शिक्षा व्यवस्था में, यह सार्वजनिक क्षेत्र से निजीकृत हो चुका है और सरकार की निगरानी में होने के बावजूद, शिक्षा का व्यापार बढ़ता ही जा रहा है।
इसके अलावा, भ्रष्टाचार ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था को कमजोर किया है, जिससे शिक्षा क्षेत्र में अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *